अधिकारों से अनजान, संघर्षों से घिरी और समाधान की तलाश में
by Nanhku Singh

झारखंड के लातेहार जिले के लंका गाँव में रहने वाली महरंगिया देवी, परहिया जनजाति से आते हैं, जो भारत की विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) में से एक है । उनके परिवार में सात सदस्य हैं, लेकिन जीवनयापन की चुनौतियाँ उन्हें हर दिन नए संघर्षों के सामने खड़ा करती हैं। उनका परिवार वन उत्पाद— जैसे लाठा, फल , फुल, लकड़ी, पत्ती या गाँव में ही खेती-दिहाड़ी करके गुजारा करता है। लेकिन सरकारी योजनाओं के लाभ उनके परिवार तक पहुँचने में अब तक नाकाम रहे हैं ।
महरंगिया देवी का परिवार आज भी कई योजनाओं से वंचित है। उनके पास अन्तोदय राशन कार्ड है, लेकिन इसकी कॉपी उनके पास नहीं है । राशन कार्ड में परिवार के चार सदस्यों के नाम तो हैं, पर तीन सदस्यों का नाम अब तक नहीं जोड़ पाए। उन्होंने इसे जोड़ने की कोशिश भी नहीं की क्योंकि उन्हें नहीं पता कि प्रक्रिया क्या है ।
झारखण्ड में PVTG परिवार के लिए ख़ास पेंशन दिया जा रहा है, लेकिन बैंक खाता नहीं होने के कारण वह पेंशन का लाभ नहीं ले पा रहे हैं । जब बैंक खाता बनाने गये तो पैन कार्ड नहीं होने के कारण बैंक खाता खोल नहीं पाए। अब जब पैन कार्ड बनवा लिए हैं लेकिन इनके पास पैसे नही रहने के कारण बैंक खाता नही खुलवा पा रहे है क्योकि खाता खोलने में 500 रु पैसा मांग किया गया था प्रज्ञा केंद्र में ।
2018-19 में उनके परिवार ने भुखमरी और बीमारी की वजह से दो बेटियों को खो दिया। पूजा और मनीता, 16 और 17 साल की थीं । बीमारी के इलाज के लिए पैसे न होने पर उन्हें झोला छाप डॉक्टरों का सहारा लेना पड़ा। यह दर्दनाक घटना उनके जीवन की कड़वी सच्चाई को दर्शाती है । 2022 में उनकी एक और बेटी का जन्म हुआ, जिसका इलाज रांची में कराया गया। इलाज के लिए उन्होंने 70-80 हजार रुपये का कर्ज लिया। यह परिवार आमतौर पर पलायन नहीं करता था परन्तु इस कर्ज को चुकाने के लिए पूरा परिवार ईंट भट्ठे में काम करने जोनपुर, बिहार चला गया था ।
महरंगिया देवी के परिवार में स्वस्थ एवं चिकित्सा एक बड़ी चिंता रही है, लेकिन आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल पाया, कारण? इस योजना की जानकारी का अभाव, जटिल प्रक्रिया, और पास के अस्पतालों में इस योजना के तहत इलाज की सुविधा न होना। ऐसी योजनाएँ एक बेहतर जीवन की ओर पहला कदम हो सकती हैं, लेकिन उनका सही तरीके से कार्यान्वयन ज़रूरी है ।
उनके पास अन्तोदय राशन कार्ड है जो महीने में 35 किलो चावल हर महीने का प्रावधान है वन नेशन वन राशन कार्ड (ONOR) के तहत वह भारत के किसी भी राज्य से अपने महीने के राशन का उठाव कर सकते हैं । इसके अलावा यह क्यूंकि PVTG परिवार से आते हैं वह डाकिया योजना तहत उनके घर तक राशन पहुँचाने का भी योजना है । परन्तु इसके बारे में वह कोई जानकारी नहीं रखती है ।
जोनपुर में ईंट भट्ठे में काम करके 9 महीने बाद जब महरंगिया देवी का परिवार वापस लौटा, तब 9 माह के 315 किलो बकाया राशन के लेने का प्रयास की लेकिन मार्केटिंग ऑफिसर (MO) ने कहा की अब पिछला राशन नही मिलेगा क्योकि 9 माह से अंगूठा नही लगा था, उन्होंने कोई कारवाई नहीं की और ना ही किसी के पास शिकायत किया । वह किसी की पास कुछ नही बोली लेकिन गाँव के लोगो को पता था की उनका राशन नही मिल रहा है । लिबटेक ने जब राशन पर शोध करने के लिए गाँव का भ्रमण किया, तो अन्य गाँव के निवासी ने बताया कि महरंगिया देवी को उनका राशन नहीं मिल रहा है । जब आहार वेबसाइट, जिसमें झारखण्ड के जन वितरण प्रणाली की कई सूचनाएं इस ऑनलाइन पोर्टल में उपलब्ध होती है, उस पर जांच की और पाया कि MO पिछले 9 महीनों से राशन गबन कर रहे थे। अपवाद पंजी के माध्यम से हर महीने राशन वितरण दिखाया जा रहा था, कभी महरंगिया देवी के नाम से और कभी उनके पति सकेन्द्र परहिया के नाम से ।
इसके बाद महरंगिया देवी को सलाह दिए की इस घटना का शिकायत करना होगा तभी उनको राशन मिलेगा तो महरंगिया देवी ने एक आवेदन त्यार कारवाई और राज्य खाद्य योग को whatsapp के दिनांक 14-10-2024 को भेजा और 16-10-2024 को राज्य खाद्य आयोग से DGRO (District Grievance Redressal Officer) लातेहार को भेजा और एक सप्ताह के अन्दर 315 किलो राशन मोहरमनिया देवी को प्राप्त हुआ ।
महरंगिया देवी की कहानी उन अनगिनत परिवारों का प्रतीक है, जो अधिकारों से वंचित हैं। यह कहानी दिखाती है कि कैसे अनदेखी और भ्रष्टाचार से वंचित समुदाओं का हक मारा जाता है। लेकिन यह भी साबित करता है कि जागरूकता और सही मार्गदर्शन से बदलाव संभव है।
गाँव और समुदाय स्तर पर जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है। ऐसी कहानियाँ हमें सिखाती हैं कि सिस्टम को पारदर्शीता और इंसानियत से भरा होना चाहिए। योजनाएँ ज़रूरी हैं, लेकिन इनके साथ-साथ ज़रूरी है जवाबदेही और सेवाएं पहुँचाने में सुधार। सिस्टम को इतना सक्षम बनाया जाए कि गरीब परिवारों को उनके अधिकारों के लिए लड़ना न पड़े। उनकी समस्याओं का समाधान समय पर और बिना किसी भेदभाव के हो।